यह कहानी विभाजन पूर्व भारत की पृष्ठभूमि में रचे गए एक संवेदनशील किरदार, करतार सिंह की है। कोलकाता की सांस्कृतिक छांव में बहन के स्नेह में पले-बढ़े करतार के जीवन में सब-कुछ बदल जाता है जब 1946 के डायरेक्ट एक्शन डे पर वह अपनी बहन की निर्मम हत्या का साक्षी बनता है। बहन की कढ़ाई की हुई फुलकारी, खून में सनी राखी और स्मृतियों के बोझ के साथ वह लाहौर लौटता है—लेकिन जल्द ही उसे समझ आता है कि यह ज़मीन भी अब उसकी नहीं रही। लुधियाना के शरणार्थी शिविर तक की यह यात्रा पीड़ा, प्रेम और बिछड़न की गाथा बन जाती है।
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