प्रणाम!🙏
आजकल कैंसर के बारे में बहुत पढे-सुने आ देखे के मिलता। लोग हमसे पुछेला – ई का ह, कइसे होला, आ हम एमे का शोध करतानी? ओहि खातिर ई ब्लॉग लिखाइल बा ताकि रउवा सबके एकरा बारे में जानकारी मिल सके। आईं, शुरू कइल जाव।
कैंसर का ह?
सोचीं, गाँव में एगो पेड़ बा। पेड़ ठीक-ठाक बढ़त रहे, लेकिन अचानक ओकर एगो डार बेकाबू होके बढ़े लागल। पेड़ के दोसर हिस्सा सधारन बा, बाकिर ई डार के बढल रुकबे नइखे करत। शरीर में ई बेकाबू डार के समझीं कैंसर ह। जइसे घर बनावे खातिर कई गो ईंटा लागेला, वइसे ही इंसान के शरीर लाखों-करोड़ों छोट-छोट कोशिका से बनल बा। जब ई कोशिका सधारन तरीका से बढ़ेला आ एक समय बाद मर जाला त देह ठीक रहेला। बाकिर जब कवनो कोशिका बिना रोकटोक बढ़े लागे, त उहे कैंसर कहल जाला। शरीर के जवन हिस्सा के कोशिका बढ़े लागी ओहि हिसाब से ओ कैंसर के नाम रखाला: जइसे फेफड़ा, स्तन, प्रोस्टेट, ल्यूकेमिया (खून), हड्डी, दिमाग, त्वचा, वगैरह के कैंसर। एगो बढ़ अस्पताल के बाहर जाके देखीं त बुझाई कि ई बेमारी खाली सहरिया या अमीर लोग के नइखे, बलुक गाँव-देहात, अमीर-गरीब, सब जगह तेजी से फइल रहल बा। हमार अनुसंधान स्तन कैंसर पर बा।
स्तन कैंसर के शुरुआत, जांच, आ इलाज
स्तन कैंसर तब होला जब छाती के कोशिका आपन नियंत्रण खो देला। कारण कई तरह के हो सकेला जइसे महिला भइल, बढ़त उमिर, रहन-सहन, आनुवांशिक (खानदानी), या वातावरण। एके शुरुआती लक्षण में:
- सीना में गाँठ (गिल्टी) बनेला।
- स्तन आकार बदल सकेला।
- पानी/खून निकलेला।
- कबहूँ दर्द या भारीपन होखेला।
भारतीय समाज में लाज-संकोच के कारण अधिकतर माई-बहिन लोग एकरा बारे में बोले-बतियावे में संकोच करेला। एही से इलाज कठिन हो जाला। कवनो बदलाव महसूस भइला पर तुरते डॉक्टर लगे जाए के चाहीं। अस्पताल में पहिले अनुभवी नर्स द्वारा स्तन के जाँच होला। एकरा बाद मैमोग्राफी-अल्ट्रसाउन्ड आदि से स्तन के गाँठ जाँचल जाला। फेर सुई से कैंसर के नमूना (जेके बायोप्सी कहल जाला) लेके लैब में भेजल जाला जवना से पता चली कि ई कैंसर ह कि ना। अगर बा, त तुरत इलाज – ऑपरेशन, सुई-दवाई (कीमोथेरपी), या किरण (रेडिएशन) शुरू होला। समय से जाँच, दावा-दारू चालू हो जाई त जिनगी लमहर कइल जा सकेला।
आज स्तन कैंसर दुनिया भर में औरतन के सबसे आम कैंसर बन गइल बा।
- हर साल करीब 23 लाख नया केस दुनिया में दर्ज होला।
- हर 8 औरत में से 1 के जिनगी में कबो ना कबो ई बेमारी हो सकेला।
- भारत में हर साल करीब 2 लाख नया केस मिले ला।
- शहर में जागरूकता अधिक बा, लेकिन गाँव-देहात में औरतन देर से अस्पताल पहुँचेलीं, एही से भारत में मौत के दर अधिक बा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के ई आंकड़ा साफ बतावत बा कि कैंसर खाली एगो बीमारी ना, बलुक समाज पर बोझ आ चुनौती बा।
अब वैज्ञानिक कहाँ काम आवेला?
डॉक्टर लोग मरीज़ के उपचार करेला, लेकिन उ दवाई कई बरिस के वैज्ञानिक शोध के बाद तईयार भइल बा। एक्के दावा हर मरीज पर एकही तरह से काम ना करेला। कउनो मरीज पर तुरते असर करी, कउनो पर कम असर करी, आ कउनो पर कामे ना करी। वैज्ञानिक लोग खाली दवाई खोजे-बनावे वाला कारखाना ना ह। बलुक हमनी के काम ह:
- कैंसर के भीतरी राज खोलल।
- ई बुझेके कि काहे एगो मरीज पर औषधि काम करेला आ दोसर पर ना करेला।
- शरीर के कोशिका में कवन चाबी-ताला खराब भइल बा, ओकरा से कइसे बेमारी बढ़ रहल बा, आ ओके कइसे रोकल जाव।
हमनी के शोध एही मकसद से होला कि इलाज सब पर असर करो, जल्दी करो, आ कम नुकसान करो। मतलब डॉक्टर आ वैज्ञानिक दुनु एके खेत के अलग-अलग हरवाह ह। डॉक्टर तुरते फसल बचावेला आ वैज्ञानिक ओह फसल के जड़ तक जा के देखेला कि समस्या दुबारा ना होखे।
हमार अनुसंधान: स्तन कैंसर के ताला-चाबी खोज
हमार रिसर्च मुख्य रूप से स्तन कैंसर, खासकर ट्रिपल-नेगेटिव स्तन कैंसर (टीएनबीसी) पर बा। ई बेमारी के नाम “ट्रिपल-नेगेटिव” एही से पड़ल काहेकि एमें तीन गो प्रमुख ताला-चाभी (हॉर्मोनल रिसेप्टर), जवन अक्सर इलाज के निशाना होखेला, ऊ सब ना रहेला। मतलब, जवन दवाई बाकी किसिम के स्तन कैंसर में काम करेला, टीएनबीसी में ई ताला-चाभी ना होखे से काम ना करी। एही कारण से टीएनबीसी के निवारन कठिन आ मौत के संभावना अधिक होला।
अब सवाल उठेला जब तीनु ताला-चाभी नइखे, तब इलाज कहाँ से शुरू होई? एहमें कुछ मरीजन में एगो नया दरवाजा खुलत बा – ऊ ह एन्ड्रोजेन रीसेप्टर (एआर)। एआर आमतौर पर मर्दाना हॉर्मोन (टेस्टोटेरॉन) से जुड़ल बा। बाकिर वैज्ञानिक लोग देखले कि कुछ औरतन के स्तन कैंसर कोशिका में भी ई मौजूद बा। अब ई एआर कबो त कोशिका के बिकास बढ़ा देला, आ कबो ऊहे कैंसर के रोक सकेला। मतलब ई दोहर भूमिका वाला चाबी-ताला ह। एकरे साथे हम ग्लूकाकार्टीकोएड रीसेप्टर (जीआर) पर भी ध्यान दे तानी जवन शरीर के तनाव आ रोग-प्रतिरक्षा प्रणाली से जुड़ल बा। सोझा कहीं त हमरा शोध से ई समझ आ सकेला कि टीएनबीसी मरीजन में केकरा शरीर में कौन ताला लागल बा, आ केकरा पर कौन चाबी काम करी। एहसे उपचार अउरी सटीक, असरदार, आ सुरक्षित हो सकी।
- कोशिका
लैब में हम कैंसर के कोशिका उगावेनी। ओकरा में देखेनी कि एआर आ जीआर कइसे काम करत बा। फिर ओमे दवाई डालके परखेनी कि कोशिका मरत बा कि जिंदा रहत बा। अगर मरता त केतना दवाई से… केतना प्रतिशत मरता… केतना दिन में मरता… आदि। ई सब बहुत बारीकी से देखल जाला। खोज के ए भाग से बुझाला कि कवन मरीज पर कौन दवाई असर करी।
- चूहा
कवनो दावा इंसान के प्रयोग से पहले जानवर, खासकर चुहन पर जाँचल जाला। इंहाँ ध्यान दीं कि ई सारा काम बहुत सावधानी से आ संवेदना के साथ कइल जाला। आखिर चुहवा इंसान के रक्षा खातिर आपन योगदान दे ताड़ सन। हम मादा चूहा के स्तन कैंसर करावेनी आ फिर ओकर अलग-अलग दवाई देकर जाँच करेनी कि कइसे ओकर कैंसर ठीक होता। अनुसंधान के ए भाग से दावा के असली ताकत परखाला।

- कैंसर मरीज
अस्पताल से रोगी के कैंसर ऊतक आ खून के नमूना लेके ओकरा में देखनी कि एआर भा जीआर बा कि ना। यदि बा त केतना मात्रा में बा, आ कौन भाग जागल बा। एसे हमनी के अनुमान लागेला कि ए मरीज में कौन दवाई असर करी। रोगी के हालत आ लैब के रिजल्ट के मिलान कइल जाला। एसे असली दुनिया के तस्वीर साफ हो जाला।
- क्लिनिकल ट्रायल
नया दवाई सीधा बजारी में ना आ सकेला। एसे पहिले ट्रायल (शुरुआती जाँच) में सैकड़ों मरीज पर परखाला। हमनी के अभी अइसन ट्रायल में शामिल बानी जा, जवन देखत बा कि एआर आ जीआर पर असर करे वाली दावा से टीएनबीसी मरीज के फायदा होला कि ना। ट्रायल से ही असली इलाज तक पहुँचल जा सकेला।

- बारीक काम (मॉलिक्यूलर बायोलॉजी)
हम कोशिका के अंदर के भाग जइसे (डीएनए, आरएनए, प्रोटीन, आदि आनुवंशिक तत्व) निकालके बारीकी से देखेनी। ए सब काम से कैंसर के भीतर के असली “गड़बड़ी” पकड़ा जाला। मान लीं, जइसे किसान अगर जान जाई कि फसल में कीड़ा काहें लागेला, त सही फर्टिलाइजर-कीटनाशक डाल के फसल बचा ली। ओइसहीं, अगर हम जान लीं कि कैंसर काहे बढ़ रहल बा, त सही दवाई से कई रोगी के जान बचावल जा सकेला।

कैंसर खाली एगो बीमारी ना, बलुक घर-परिवार साथ-समाज के खतम करे वाला राक्षस ह। गाँव के माई-बेटी जब सीना में गाँठ महसूस करेली, त डर, शंका, आ अनिश्चितता उनका जिनगी पर छा जाला। डॉक्टर उनकर उपचार त करेला, लेकिन ई सवाल बाकी रहेला, “काहे कुछ मरीज जल्दी ठीक हो जालन, आ काहे कुछ पर इलाज कामे नइखे करत?” एह सवाल के जवाब खोजे खातिर वैज्ञानिक लोग दिन-रात लैब में लागल बा। हम जइसे लोग कोशिका, चूहा, आ कैंसर के मरीज पर काम करेला आ देखेला कि ए बीमारी के ताला कहाँ फँसल बा। मतलब मरीजन के शरीर में जवन ताला बा, ओह खातिर सही चाबी बनावल जाव। हमरा रिसर्च के सपना बा कि अच्छा आऊर कामगार दवाई बनो आऊर ऊ मरीज के हिसाब से काम करो। अगर ई खोज आगे बढ़ल, त डॉक्टर लोग केहू के इलाज करे के पहिले ई देख पाई कि मरीजन पर कौन दवाई असर करी। उम्मीद बा कि अइसन अनुसंधान से भारत आ दुनिया में लाखों औरतन के जिनगी बचावल जा सकेला।
ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः
© त्र्यम्बक श्रीवास्तव
30 अगस्त 2025
डलास, टेक्सास, संयुक्त राज्य अमेरिका