इस कथानक के महानायक अलौकिक एवं घटनाएँ काल्पनिक हैं। इनकी वास्तविकता से सच्चाई इतनी ही है जितनी परियों की कहानी, जितनी सैंटा क्लॉज़ के उपहार, या फिर हमारे हीरो की इज्जत। कृपया इसे इतर ना लें। यह हमारा अहोभाग्य है कि इस महाप्राण के कदम धरती पर पड़े। अगर आप फिर भी इस आत्ममुग्ध मदिरामती मदांध महामानव का पता बताते हैं तो संभवतः सुर, नर, मुनि, ऋषि, यक्ष, किन्नर, एवं गन्धर्व ससम्मान मेड इन चाइना पुष्पक विमान से इन्हें असुर लोक के लिए रवाना करेंगे। इस महापुण्य से आपको चार धाम की यात्रा इतना ही फल मिलेगा।
आप सोच रहे होंगे की जिस व्यक्ति की भूमिका के लिए इतना बड़ा डिस्क्लेमर लिखा गया, वह आप कितना महान होगा। बिलकुल सही सोच रहे हैं आप। हमारा नायक नायाब है। निहायती नालायक, निकम्मा, और नाकारा बिलकुल भी नहीं। वो क्या है की जब तीनों लोकों का बटवारा हो रहा था तो कुछ पातालगामी जीव अस्ताचल से प्रादुर्भाव लेकर भूलोक का भार बढ़ाने को उदित हुए।
“हज़ारों साल नरगिस अपनी बे-नूरी पे रोती है.. तब चमन में पैदा होता है देदेवर ऐसा।”
आइये आपको इनकी कुछ विशेषताओं से परिचित कराते हैं।
1. मदिरामती मंदबुद्धि महिभार
सोमरस का सेवन भुलोकवासियों को देवतुल्य बनाता है। पियक्कड़ी में प्रत्यक्षतः देवदास से प्रतिस्पर्धा करने वाले हमारे नायक किसी की याद में मदिरा को हाथ नहीं लगाते। इनका ईमान सिर्फ दूसरों के द्वारा प्रायोजित चिल्ड बीयर, वाइन, वोडका इत्यादि का भोग करने की अनुमति देता है। मदिरापान से आच्छादित इनकी अल्पबुद्धि बड़े-छोटे का भेद मिटा देती है। जूनियर्स से पार्टी ले लेकर यह एक क्रांतिकारी की भांति कोलोनियल प्रथा पर आघात करते हैं। हम जूनियर्स को लुटते हैं। जाओ क्या उखाड़ लोगे? इसी ओछेपन और फक्कड़पन से छोटों से उपकृत चंदों से मलाई चाटने वाले चिंटू इनके कायल हैं। वैसे भी मदिरा तो सादगी का प्रतीक है। पर्यावरण प्रेमी हमारे नायक की जीवनशैली इतनी सरल है की यह रीसायकल में यकीं करते हैं। मद्य बोतलों में पानी भर कर पीते हैं।
नुसरत साहब ने शायद इनके लिए ही यह मिसरा गाया था.
“शराब कैसी, खुमार कैसा, ये सब तुम्हारी नवाज़िशें हैं..
पिलाई है, इस नजर से तूने.. मुझे अपनी खबर नहीं है…”
2. स्वकेंद्रित आत्ममुग्ध असुरक्षित लघुमानव
जब आप सर्व दुत्कारित तिरष्कृत कीटमानव है, और अचानक आपकी इज्जत बढ़ जाये तो समझ लेना चाहिए की क्रांति नजदीक हैं। आप देवनगरी बनारस के चौक-चौराहे पर होने वाले राजनैतिक बहस परम्परा का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस परम्परा की खासियत यह है की वहां पंचायत चुनाव से लेकर ट्रम्प और ओबामा के मैनिफेस्टो पर डिबेट होती है। हमारे नायक भी मदिरांध होकर अपनी हाजिरी देते हैं। ये प्राणी जिसकी क्षमता एक पंचायत चुनाव में उम्मीदवार बनने की भी नहीं होती है, वह सीधे प्रधानमंत्री का फैसला करते हैं। अब शायद समझ आया कि “हंगामा है क्यों बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है।”
3. परनिंदा पोषित पराश्रित पुन्यप्राण
परनिंदा किसी के लिए यशोपार्जन का जरिया बन सकती है। एक बार पड़ोस के मिश्रा जी बीमार हुए। डॉक्टरों के लाख इलाज के बाद भी तबीयत में सुधार नहीं आया। एक मनचले ने जाकर कह दिया कि शर्मा जी के बेटे का इस बार भी आईआईटी में सिलेक्शन नहीं हुआ। मिश्रा जी पूरे मोहल्ले में घूम-घूम कर ये ब्रोडकास्ट कर आये। हमारे महामानव मिश्रा जी से चौवालीस कदम आगे हैं।
4. आत्मनिर्भर अकर्मण्य कर्मयोगी.
बेरोजगारी के अपने फायदे हैं। आप दूसरों के नेता बनोगे। वैसे भी लाइफ़ में चाहिए इज्ज़त। ये तो एक कर्मयोगी हैं। एक बार किसी चीज की शिद्दत से चाह की तो फिर दिमाग की भी नहीं सुनते। चाहे पूरी दुनिया ही क्यों ना आगे बढ़ जाये। जब सारी प्रजातियाँ समय के साथ आगे बढती हैं, तो ये श्रीमान यहीं रहेंगे। क्योंकि बदलाव जरूरी है। स्वघोषित बाबा स्टाइल में ओछे अणुओं से इनका किया बेतुका वादा जरुरी है। आखिर कुछ लोग कसमों वादों के लिए भी जीते हैं। क्रांति की मशाल जलती रहनी चाहिए। दुनिया की कोई भी ताकत इनके अन्दर के इस कर्मयोगी को निकाल नहीं सकती। नमन है।
5. सर्वदुत्कारित भयभीत भ्रमदेव
एक बार इन्हें किसी ने ईमान और इज्ज़त की मुगली घुट्टी पिला दी। ये महाशय कई दिनों तक अपनी स्वतंत्र सोच को अवशोषित किये रहे। ऐसी ही कुछ क्रांतिकारी मौकों पर इनकी मांस-मदिरा, सिगरेट-मदिरा, मदिरा-मदिरा की बेधड़क खपत बढती गई। ये झूमते हैं। “जितनी तु मिलती जाये, उतनी लगे थोड़ी थोड़ी।” एक और चीज में बेतहाशा वृद्धि हुई। इनकी बेइज्जती और बेहयाई में। इस महापुरुष को एक विहंगावलोकन था की लोग इनकी सुनते हैं। लोग जो वयस्क हैं। लोग वो जिनके सामने इनका कम्बल-कुटाई कार्यक्रम हो चुका है। उम्मीद है कि समय के साथ इन्हें सत्यावलोकन हुआ कि ये तो गधे थे जो अब तक यहाँ थे। और गधों का मत नहीं होता ना ही कोई सुनता है। उनका सिर्फ इस्तेमाल किया जाता है।
ये एक बार चिड़ियाघर गए। वहां पांडा को देख बोले यार तुम्हारी प्रजाति तो विलुप्त हो रही है? उसने जवाब दिया “वी मे बी इन्डेजर्ड। स्टिल यु आर वन्स इन जेनेरेशंश, सर।”
ऐसी दुर्लभ प्रजाति को अंतर्राष्ट्रीय म्यूजियम में भारी सुरक्षा के साथ रखना चाहिए। इनके बारे में और क्या कहें। बस ये समझ लीजिये की यह कलाशुन्य जगत में मजनूँ भाई की पेंटिंग के समान मास्टर पीस हैं।
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