इस संसार में सारी स्थितियां अपने साथ एक नकारात्मक भाव रखती हैं। सुख है, तो दुःख भी, अमीरी के साथ गरीबी सन्निहित है। यथा ही प्रकाश के साथ अंधकार भी सतत गतिमान है। इसी सन्दर्भ में स्मरण में आते हैं अँधेरे के कवि, फ़िराक गोरखपुरी जी। फ़िराक साहब ने अपनी रचनाओं में इन्ही नकारात्मक पहलुओं की सुंदर विवेचना कि है। “सचमुच मुझे दंड दो, कि भूलूं मैं , भूलों मैं, तुम्हे भूल जाने की“।
इसमें संशय नहीं कि इन नकारात्मक पहलुवों के महत्व को यूँ ही दरकिनार नहीं किया जा सकता। कल्पना कीजिये, अगर गरीबी नहीं है तो अमीरी का क्या महत्व? अगर अंधकार है तभी हम प्रकाश के उपयोग को समझ सकते हैं। इसी भाव को हम काव्य में भी देख सकते हैं जहाँ विछोह है तभी मिलन का आनंद। वियोग श्रृंगार के बिना संयोग की कल्पना भी नहीं कि जा सकती। एक विरहिणी नायिका है, जिसके मन में अपने प्रेमी से मिलने कि आस है, तभी तक संयोग जन्य सौंदर्य की कल्पना की जा सकती है। इस सन्दर्भ में एक तथ्य और काबिले-गौर है, कि भूलने के भाव का भय सचमुच भुलने से कही ज्यादा भयावह है। अर्थात यदि मन में यह संशय पैदा हो गया कि हम किसी को भूलने वाले हैं तो यह स्थिति ज्यादा कष्टदायी है, बजाय इसके की हम उसे भूल जाये। एक शहीद की मौत लाखों गीदडों कि बलि से बेहतर है। कहने का मूल तात्पर्य यह है कि संसार कि समस्त चीजें परिस्थितियां एक दूसरे के साथ सतत गतिमान हैं। अच्छे की सत्ता स्थापित करने के लिए अगले को ग़लत नहीं ठहराया जा सकता है। सबने प्रकाश, मिलन, अमीरी, पर बहुत कुछ लिखा मगर इनके पृष्ठ की अपेक्षा की गई। अतः इस सन्दर्भ में यह प्रयास सराहनीय लगता है कि यदि मुझे इस प्रकाश कि बजाये गहन पतली अंधकार का वरण करना हो तो शायद वह कुछ बेहतर दुनिया का आइना दिखा सके। शीर्षक से उस प्रतीकात्मक गहन तमस का आलिंगन करने कि उत्कंठा मन में उठती है, जिसकी पैरोकारी करने की आवश्यकता है। पुराने काव्य को कुछ तोड़ा मरोड़ा गया है ताकि कथ्य प्रभावी बन सके।
भाव बिना भाषा के अपहिज होता है, अतः भाषा और शैली के बारे में आपके विचार सर्वथा आमंत्रित हैं।
धन्यवाद।
साभार।
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