ख़यालों के झरोखे से …

Tryambak Srivastava Avatar
ख़यालों के झरोखे से …
बहुत जल्दी करनी थी, पता ये देर से चला,
बीता वक्त न वापस आता, कितने सूरमा गाज़ी हो।

अच्छे-बुरे और अपना-पराया, इनमें हम मशरूफ रहे,
मेरी खुलूस खुद्दारी पर जख्म लगाते नाज़ी हो।

ऐ वतन तेरे सदके जाऊं, तेरी मिट्टी में जो जन्म लिया,
मौत को आए मौत जहां पर जान लगाती बाज़ी हो

नफ़रत की दीवार है ऊंची, ईश्क की सेंध लगानी है,
इल्म-ए-मोहब्बत बांटे जो, ऐसा भी इक क़ाज़ी हो।

दरिया-ए-इश्क में डूब कर होश सम्हाली जिम्मेदारी,
दुनियां से लड़ जाऊं मैं, साथ अगर तुम राज़ी हो।

हमनें जो तुमको खुदा माना, तुम हमको ही भूल गए,
जब संघर्ष हमारे हिस्से का तो खुशियां फिर क्यों साझी हों?
Bahut jaldi karni thi, pata ye der se chala,
Bita waqt na wapas aata, kitne soorma ghazi ho.

Achhe-bure aur apna-paraya, inmein ham mashroof rahe,
Meri khuloos khuddari par zakhm lagate nazi ho.

Aye watan tere sadke jaun, teri mitti me jo janm liya,
Maut ko aaye maut jahan par, jaan lagati bazi ho.

Nafrat ki deewar hai oonchi, ishq ki sendh lagani hai,
Ilm-e-mohabbat bante jo, aisa bhi ik qazi ho.

Dariya-e-ishq mein doob kar hosh samhali zimmedari,
Duniya se lad jaun main, sath agar tum razi ho.

Hamne jo tumko khuda mana, tum hamko hi bhool gaye,
Jab sangharsh hamare hisse ka to khushiyaan fir kyon sajhi ho?

© त्र्यम्बक श्रीवास्तव

07 मार्च 2023

नई दिल्ली

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