हमारे चेहरे से दिल के भाव पढ़ लेती हो,
माँ, ये तुम खुद हो, या ख़ुदा, विश्वास नहीं होता।
 
“लड़कों से गलतियां हो जाती हैं,”
ये मुल्क की सरकार चलाते हैं, विश्वास नहीं होता।
 
मानवी सबंधों की क्या बानगी दे ज़नाब,
“ओल्ड एज होम” खुल रहे हैं कस्बों में; विश्वास नहीं होता।
 
शायर शब्द से, पहलवान कद से, और इंसान पद से,
प्रतिभा पहचान की मोहताज़ है, विश्वास नहीं होता।
 
“सुख और दुःख एक ही सिक्के के दो पहलू हैं,”
मगर, बेवक्त में हवाएं रुख़ मोड़ लेती हैं, विश्वास नहीं होता।
 
वैचारिक विविधता समाज की प्रगति का आईना है,
कुछ आवाजें ख़ामोश कर दी जाती हैं, विश्वास नहीं होता।
 
कुछ रिश्ते मतलब के, कुछ मतलब के रिश्ते,
हम तुम्हारा कैसे यक़ीन माने, विश्वास नहीं होता।

 

© त्र्यम्बक श्रीवास्तव 

I read and I write. Not in any particular order
Categories: Poetries

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