वैसे तो हमारी शादी को दस साल हो गए लेकिन मुहब्बत का वो अनछुआ अहसास अभी भी अंगड़ाई ले रहा था। वो हमारी बेस्ट फ्रेंड थी और हम उसके शरारतों के साथी। बालपन का वात्सल्य, किशोरावस्था का अल्हड़पन, जवानी के जोश, और बुढ़ापे की सूझ-बूझ इन सबको मानो हमने साथ-साथ बिताया हो। उसे हमारे सारे राज पता थे, और हम उसपर सदा आश्रित।
नाम तो उसका परिणीता था परंतु वह अपने प्यार की पराकाष्ठा में अपरिमिता थी जिसने मेरे जीवन को परिपूर्ण किया। वह हमारी खिचड़ीनुमा जिंदगी में अचार और पापड़ की भांति आई। उसे चटक और रोमांचक बनाने। हमारी बेसुरी आवाज में उसे तानसेन का प्रतिबिंब दिखता था। विविध भारती के ‘हेलो फरमाइश’ की तर्ज पर अपने पसंदीदा गानों का अनुरोध करती और हम अपना राग दरबारी अलापते।
ऊपरवाले की शायद यही इच्छा थी कि हम दो से तीन ना हो पाएं । समय के साथ इसको सत्य मानकर जी तो रहे थे। लेकिन मन इस बात की गवाही नहीं दे रहा था। हमने इसका भी एक काट निकाल लिया। एक-दूजे के अन्दर आच्छादित अबोध बालक को हमने अपना लिया। अपनी परी को स्पेनिश भाषा का ‘ईटो’ प्रत्यय लगाकर हमने ‘परीटो’ बना लिया। हम तो हमेशा उसके ‘बाबु’ ही रहे।
जब वो हमसे नाराज होती तो पूरे दिन घर की सफाई करती। फिर मेरी बड़ी सी टी-शर्ट पहन कर मेरे ही सामने मटकती। जब तक हम उसे ना मना लेते। इस मानने और मनाने की प्रक्रिया में हमें उससे फिर से प्यार हो जाता। फिर वो सोफे पर कोहनी टीका कर बैठती और हम टेबल को तबला बनाकर मन्ना डे का गाना सुनाते। फिर शुरू होती उसकी अतरंगी अंत्याक्षरी। नियम यह थे की गाने अंतिम शब्द से नहीं, पिछले गाने के भाव को जारी रखते हुए गाए जाएंगे। हम हार जाते तो कोल्ड कॉफ़ी पीती और वो जीत जाती तो आइसक्रीम खाती। परिणाम भी ऐसे ही निकलकर आते थे।
पिछले कुछ महीनों से उसे स्तन कैंसर की समस्या उत्पन्न हो चुकी थी। हमने सारी चिकित्सा पद्धतियों को आजमा लिया। पर उसके शरीर का कैंसर उसे खा चुका था। इस दौरान भी उसे सिर्फ मेरी चिंता होती थी। अपने जाने से ज्यादा मेरे अकेले होने के ख़याल ने उसे और खोखला कर दिया था। अब हमें ‘पैलिएटिव केयर’ यानी घर में प्यार भरे वातावरण में उसकी देखभाल करनी थी।
एक रात मेरे सीने पर सर टिका कर उसने कहा, चलो अपनी अंत्याक्षरी खेलते है। इस बार तुम पहले शुरू करोगे।
“तुम आ गए हो, नूर आ गया है, नहीं तो चरागों से लौ जल रही थीं,
जीने की तुमसे, वजह मिल गई है…” हमारी लाइन अभी खतम भी नहीं हुई की उसने शुरू कर दिया।
“हमको मिली हैं आज ये घड़ियाँ नसीब से, जी भर के देख लीजिये हमको क़रीब से..“
उसकी पकड़ मजबूत होती जा रही थी। हम अपने सीने पर उसकी गर्म सांसें और आंसू दोनों महसूस कर रहे थे।
“फिर आपके नसीब में…” उसकी आवाज शिथिल पड़ रही थी। अब ख़ामोशी मेरे कानों में चीख रही थी।
“परी. परीटो.. परीटो??” हमने पुकारा।
“आए हो मेरी ज़िन्दगी में तुम बहार बनके,
मुझे छोड़के ना जाना, वादे हज़ार करके..“
हम समझ गए कि वो जा चुकी थी। अपनी बांहों में भींचते हुए हमने बदस्तूर गाना जारी रखा।
“अभी ना जाओ छोड़कर,
कि दिल अभी भरा नहीं..“

हम उसके इलाज में अपने सामर्थ्य का कण-कण अर्पित करना चाहते थे। परंतु कैंसर अपने आखिरी स्टेज में असाध्य हो चुका था। अब परी नहीं है, उसकी असंख्य यादें हैं। जब भी परी की याद आती है तो खुद ही घर को साफ कर लेते हैं। फिर लंबी सी टीशर्ट पहनकर खुद से अंत्याक्षरी खेल लेते हैं। नए साल के साथ हमने अपनी परीटो की कुछ पेंटिंग बनाई है। कुछ हँसते हुए, कुछ मुझे हँसाते हुए। यही तो वह कर गई, हँसना और हँसाना। ❤️
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6 responses to “अर्धकथ्य: एक अधूरी कहानी”
हास्य से शुरू हुई यह मर्मस्पर्शी दास्तान सवेंदना के धरातल पे ला खड़ा करती है। वसीम बरेलवी साहब का एक शेर है कि
“बुरे अच्छे हो, जैसे भी हो, सब रिश्ते यहीं के हैं
किसी को साथ दुनिया से कोई लेकर नहीं जाता।
आपकी टिप्पणी के लिए धन्यवाद निकेतन.
Story with all the shades of love ❤️
Thank you, Raghubhai. Regards.
It is amazingly written. It has all the elements of being a superhit story. It instantly and directly connects with the heart. The way you connected science (your academic knowledge) and human emotions are amazing. I am pretty confident you can bring science (research) to common people with your stories.
However, I struggled a bit with so hifi Hindi, reading after a long time in Hindi.
यह आश्चर्यजनक रूप से लिखा गया है। इसमें सुपरहिट कहानी होने के सारे गुण हैं। यह तुरंत और सीधे दिल से जुड़ जाता है। जिस तरह से आपने विज्ञान और मानवीय भावनाओं को जोड़ा है, वह अद्भुत है। मुझे पूरा विश्वास है कि आप अपनी कहानियों से विज्ञान को आम लोगों तक पहुंचा सकते हैं।
I am humbled to receive your generous and kind message, ma’am. I aspire to connect with the audience for a wider reach of science. Keep your blessings coming.